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सुबह सुबह ले शिव का नाम, कर ले बन्दे ये शुभ काम

सर्व कला, संम्पन तुम्ही हो, हे मेरे परमेश्वर,

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥

नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

देवो के हित विष पी डाला, नील कंठ को कोटि प्रणाम, नील कंठ को कोटि प्रणाम

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अर्थ- हे नीलकंठ आपकी पूजा करके ही भगवान श्री रामचंद्र लंका को जीत कर उसे विभीषण को सौंपने में कामयाब हुए। इतना ही नहीं जब श्री राम मां शक्ति की पूजा कर रहे थे और सेवा में कमल अर्पण कर रहे थे, तो आपके ईशारे पर ही देवी ने उनकी परीक्षा लेते हुए एक कमल को छुपा लिया।

श्रीरामचरितमानस धर्म संग्रह धर्म-संसार एकादशी

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

श्री शिव भजन – शंकर मेरा प्यारा लिरिक्स…

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